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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=प्रभाती नौटियाल
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<Poem>
वहाँ रंगून में आया था समझ में कि देवता भी थे
उतने ही बड़े दुश्मन जितना ईश्वर
बेचारे ग़रीबों का ईश्वर ।

खड़िया के देवता पसरे हुए थे
सफेद ह्वेल मछलियोँ की तरह
सुनहरे देवता जैसे गेहूंँ की बालियाँ
नाग देवता कुण्डली मारे थे
जन्म लेने के अपराध पर
भव्य और नग्न ...
मुस्कुराते हुए
शून्य सनातन की शराब - पार्टियों पर
जैसे ईसा मसीह सूली पर
सभी कुछ के लिए तैयार ।

हम पर अपने - अपने स्वर्ग थोपने
सभी घावों या पिस्तौल के साथ
धर्मनिष्ठा ख़रीदने या हमारा ख़ून जलाने
आदमी के खूँखार देवता
अपनी कायरता छिपाने के लिए

और वह सब कुछ था ऐसा ही
सारी धरती पर थी स्वर्ग की ख़ुशबू
दिव्य
बिकाऊ
वस्तुओं जैसी।

'''मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : प्रभाती नौटियाल'''
</poem>
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