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{{KKRachna
|रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वे जिस चीज़ का विरोध करते हैं
बाद में उसी के पक्ष में आ जाते हैं ।
कभी उन्होंने कहा था — यह साँप है
बाद में संशोधन आया कि इसे रस्सी
समझा जाए ।
समय के साथ उनके कथन बदलते रहते हैं
कभी वे शेर को बिल्ली और गदहों को
घोड़ा कहने लगते थे ।
जिधर पलड़ा भारी रहता उधर वे
बैठ जाते थे ।
वे स्थाई प्रकृति के व्यक्ति नही थे
जिधर हवा चलती थी उस दिशा में
पतंग की तरह उड़ जाते थे ।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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वे जिस चीज़ का विरोध करते हैं
बाद में उसी के पक्ष में आ जाते हैं ।
कभी उन्होंने कहा था — यह साँप है
बाद में संशोधन आया कि इसे रस्सी
समझा जाए ।
समय के साथ उनके कथन बदलते रहते हैं
कभी वे शेर को बिल्ली और गदहों को
घोड़ा कहने लगते थे ।
जिधर पलड़ा भारी रहता उधर वे
बैठ जाते थे ।
वे स्थाई प्रकृति के व्यक्ति नही थे
जिधर हवा चलती थी उस दिशा में
पतंग की तरह उड़ जाते थे ।
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