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भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें,
किंतु अँधेरे में जाकर इक एक सी हो जाती हैं।
हवा सुगंधित हो जाये कितना भी पर ‘सज्जन’,
मीन सभी मरतीं जल से बाहर जो जाती हैं।
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