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Kavita Kosh से
जान सको तो जानो
ये है नारी जीवन।
7
मेघ नहीं मैं
विचलित कर दे
वेग हवा का
और पात भी नहीं
ठेले दे पतझर।
8
कली उदास
बगिया भी चिंतित
घूमते साए
हर ओर उगे हैं
बबूल ही बबूल।
9
गिद्ध करते
उलूकों की पैरवी
न्याय की आस
भटकें पीड़िताएँ
कितनी ही आत्माएँ।
10
हमने लिखी
विनाश की लिपि से
सृजनगाथा!
दरकते भूधर
बाँचें पुकारकर।
11
व्याकुल मन
तुम्हारी निशानियाँ
देतीं दिलासा।
मन-नयन-साँसें
ताकते नित राहें।
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