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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" |संग्रह= नागफनियों ने ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
|संग्रह= नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
क्यों न हम दो शब्द तरुवर पर कहें
उसको दानी कर्ण से बढ़कर कहें
विश्व के उपकार को जो विष पिये
क्यों न उस पुरुषार्थ को शंकर कहें
हम लगन को अपनी, मीरा की लगन
और अपने लक्ष्य को गिरधर कहें
है सदाक़त सत्य का पर्याय तो
ख़ैर" शिव को हुस्न को सुंदर कहें
तान अनहद की सुनाये जो मधुर
उस महामानव को मुरलीधर कहें
जो रिसालत के लिए नाज़िल हुए
बा-अदब, हम उनको पैगंबर कहें
बंदगी को चाहिये ‘महरिष’, मक़ाम
हम उसे मस्जिद कि पूजाघर कहें
</poem>
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|रचनाकार= राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
|संग्रह= नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
क्यों न हम दो शब्द तरुवर पर कहें
उसको दानी कर्ण से बढ़कर कहें
विश्व के उपकार को जो विष पिये
क्यों न उस पुरुषार्थ को शंकर कहें
हम लगन को अपनी, मीरा की लगन
और अपने लक्ष्य को गिरधर कहें
है सदाक़त सत्य का पर्याय तो
ख़ैर" शिव को हुस्न को सुंदर कहें
तान अनहद की सुनाये जो मधुर
उस महामानव को मुरलीधर कहें
जो रिसालत के लिए नाज़िल हुए
बा-अदब, हम उनको पैगंबर कहें
बंदगी को चाहिये ‘महरिष’, मक़ाम
हम उसे मस्जिद कि पूजाघर कहें
</poem>