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Kavita Kosh से
चिन्ता करती माँ कभी मेरी, कभी पिता, कभी भाई
तब जर्मन हमले की गिरी थी, हम पर भारी गाज
याद मुझे है आज भी, यारोंयारो, माँ की मीठी आवाज़
आज सुबह-सवेरे बैठा था मैं अपने घर के छज्जे
जोड़ रहा था धीरे-धीरे कविता के कुछ हिज्जे
चहक रही थीं चिड़िया चीं-चीं, मचा रही थीं शोर
उसी समय गिरजे के घंटों घण्टों ने ली मद्धिम हिलोर
लगी तैरने मन के भीतर, भैया, फिर से आज
वही सुधीरा और सुरीली माँ की मीठी आवाजआवाज़
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