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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश अरोड़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कभी कभी मेरे शहर में भी बरसता है पानी
व्यर्थ ही भिगोता है
घर, दीवारें और सड़कें
भीगता है पूरा शहर
नहीं भीगते हैं तो
सिर्फ शहर में रहते लोग
हाँ! कुछ आवारा बच्चे निकल आते हैं सड़क पर
जब कभी मेरे शहर में बरसता है पानी
शीशे की दीवारों के पीछे खड़े लोग
देखते हैं बरसता हुआ पानी
और भीगते हुये बच्चे।
अक्सर सोचते रह जाते हैं लोग
भीगना क्यों पसन्द करते हैं बच्चे
वैसे शीशे के पार का पानी और बच्चे
उन्हें भी अच्छे लगते हैं
लेकिन ख़ुद भीगने का साहस
कभी नहीँ जुटा पाते हैं शहर में रहते लोग
हाँ , कभी कभी कोई फुहार
आ ही जाती है भीतर
फुहारों से भीगे शहर के लोग
घोषित करते हैं अपने को कला पारखी
जबकि पूरा भीगना क्या होता हैं
कभी नहीं जान सके थे वे
शीशे के घरों और पत्थरों की दीवारो वाले शहर में
क्यों बरसता है पानी
और भिगो जाता है
कुछ आवारा बच्चों को
उम्र भर भीगने का अभिशाप दीये।
</poem>
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|संग्रह=
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कभी कभी मेरे शहर में भी बरसता है पानी
व्यर्थ ही भिगोता है
घर, दीवारें और सड़कें
भीगता है पूरा शहर
नहीं भीगते हैं तो
सिर्फ शहर में रहते लोग
हाँ! कुछ आवारा बच्चे निकल आते हैं सड़क पर
जब कभी मेरे शहर में बरसता है पानी
शीशे की दीवारों के पीछे खड़े लोग
देखते हैं बरसता हुआ पानी
और भीगते हुये बच्चे।
अक्सर सोचते रह जाते हैं लोग
भीगना क्यों पसन्द करते हैं बच्चे
वैसे शीशे के पार का पानी और बच्चे
उन्हें भी अच्छे लगते हैं
लेकिन ख़ुद भीगने का साहस
कभी नहीँ जुटा पाते हैं शहर में रहते लोग
हाँ , कभी कभी कोई फुहार
आ ही जाती है भीतर
फुहारों से भीगे शहर के लोग
घोषित करते हैं अपने को कला पारखी
जबकि पूरा भीगना क्या होता हैं
कभी नहीं जान सके थे वे
शीशे के घरों और पत्थरों की दीवारो वाले शहर में
क्यों बरसता है पानी
और भिगो जाता है
कुछ आवारा बच्चों को
उम्र भर भीगने का अभिशाप दीये।
</poem>