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ब्रज अनुवादः
एकु नए भुरारे की भँड़ाई / रश्मि विभा त्रिपाठी
 
जिय निरौ अकुतान्यौ
सुस्त ह्वै
लटपटान्यौ
नियारौ हैबे चहतु हुतो सपुननि तैं
अँसुआ जीवन माँझ घुरि चुके हुते
जिमि मदिरा मैं बरफ की डिलिया
जु पै बाइ हारिबैं नाहिं ओ
बा मौंगी सी दीसिबे बारी छोरी
हरबईं उठाई बहोरी
बैसाखी टूटत भए सपुननि की
अनदेखी अरु आस कौं हाँक दई
अरु पहाड़ी पगडाँडी पै धाई
करिबे एकु नए भुरारे की भँड़ाई
जदपि नाहिं जानति बु
कित्तौ चलिबैं ह्वैहै अजौं
चोटी फतेह करिबे कौं।
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