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कलम गा उनके गीत
जिन्होंने बदली रीत
दीपक बनकर जो जलते
अँधियारों से वे लड़ते
मरहम बन पीड़ा हरते
विपदा में धीरज धरते
समय चक्र जिनके आगे
नत होकर गौरव पावे
भूल गये जो हार-जीत
याद रही बस सबसे प्रीत
’स्व’ की अंधी दौड़ छोड़कर
परहित में सर्वस्व त्यागकर
नष्ट-भ्रष्ट कर जीर्ण पुरातन
सिंचित करते हैं मानव-मन
व्यथित-विकल हैं जिनके मीत
सदियां गातीं उनके गीत
तूफानों से घिरे रहे जो
लेकिन फिर भी अडे रहे जो
औरों को करने को पार
मोड़ गये नदिया की धार
बाधाओं को करें सदा जो
अपने साहस से विपरीत
कलम गा उनके गीत।
</poem>