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फरक / महेश मास्के

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<poem>
त्यो रक्सीको नशा हो भूपि
कायर पिउँछ र जीवनलाई चिहान बनाउँछ
यो क्रान्तिको नशा हो भूपि
शहीद पिउँछ र मृत्युलाई महान बनाउँछ ।

०००

<small>५-१२-२०३८ / दरभंगा</small>
<small>प्रकाशित 'जनमानस' ५</small>

</poem>
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