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{{KKRachna
|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
किसी को भी
प्रभु का क्रॉस नहीं मिला ।
जहाँ तक अवाम के क्रॉस की बात है
तुम्हें मिलेगा
सिर्फ़ उसका एक टुकड़ा
तुम जहाँ भी अपना हाथ रखो
(और उसे अपना वतन कह सको)
और मैं अपना क्रॉस बटोरता रहा हूँ
एक हाथ से
दूसरे हाथ तक
और एक अनन्त से
दूसरे अनन्त तक ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>
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|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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किसी को भी
प्रभु का क्रॉस नहीं मिला ।
जहाँ तक अवाम के क्रॉस की बात है
तुम्हें मिलेगा
सिर्फ़ उसका एक टुकड़ा
तुम जहाँ भी अपना हाथ रखो
(और उसे अपना वतन कह सको)
और मैं अपना क्रॉस बटोरता रहा हूँ
एक हाथ से
दूसरे हाथ तक
और एक अनन्त से
दूसरे अनन्त तक ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
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