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दोज़ख़<ref> नरक</ref> सी ये दुनिया भी सुहानी है कि तुम हो
ये बारे ग़मे-ज़ीस्त उठानी है कि तुम हो
लफ़्ज़ों में वही रूहे-मुअ़ानी <ref> अर्थ-सार</ref> है कि तुम हो
ग़ज़लों में वही शोला बयानी है कि तुम हो
क्या फ़र्क़ है अब दुश्मने-जानी है कि तुम हो
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