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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दिन सलोने आ गये हैं आबशारों ने कहा।
मुस्कुरायें आप भी हँसकर बहारों ने कहा।
खिलखिला उठ्ठा चमन जब रू-ब-रू चेहरे हुए,
कुछ नज़र बोली बकाया सब इशारों ने कहा।
चुपके-चुपके बाग़ में होने लगीं सरगोशियाँ,
शबनमी गुल चुप रहे कुल हाल खारों ने कहा।
फिर नहीं लौटेंगे ये पल आ सरापा भीग लें,
कान में हौले से मौसम की फुहारों ने कहा।
लाख आँखों की नमी हमने छुपा ली थी मगर,
कह गई ख़ामोशियाँ कुछ, कुछ नजारों ने कहा।
कल कहाँ बरसे थे बादल पूछना था चाँद से,
रात सारी चाँद ग़ायब था सितारों ने कहा।
सीखिये ‘विश्वास’ जीने का सलीका-फलसफा,
डूबकर उभरे समन्दर के किनारों ने कहा।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
दिन सलोने आ गये हैं आबशारों ने कहा।
मुस्कुरायें आप भी हँसकर बहारों ने कहा।
खिलखिला उठ्ठा चमन जब रू-ब-रू चेहरे हुए,
कुछ नज़र बोली बकाया सब इशारों ने कहा।
चुपके-चुपके बाग़ में होने लगीं सरगोशियाँ,
शबनमी गुल चुप रहे कुल हाल खारों ने कहा।
फिर नहीं लौटेंगे ये पल आ सरापा भीग लें,
कान में हौले से मौसम की फुहारों ने कहा।
लाख आँखों की नमी हमने छुपा ली थी मगर,
कह गई ख़ामोशियाँ कुछ, कुछ नजारों ने कहा।
कल कहाँ बरसे थे बादल पूछना था चाँद से,
रात सारी चाँद ग़ायब था सितारों ने कहा।
सीखिये ‘विश्वास’ जीने का सलीका-फलसफा,
डूबकर उभरे समन्दर के किनारों ने कहा।
</poem>