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Kavita Kosh से
उर्दू है मिरी जान अभी सीख रहा हूँ
तहज़ीब की पहचान अभी सीख रहा हूँ
हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ
ये बह्र ये अरकान अभी सीख रहा हूँ
होने की फ़रिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़
बनना ही मैं इंसान अभी सीख रहा हूँ
आग़ाज़े मुहब्बत में ये ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ
कहता है ये दरबान अभी सीख रहा हूँ
मैं तो हूँ 'रक़ीब' आज भी इक तिफ़्ल अदब में
पढ़-पढ़ के मैं दीवान अभी सीख रहा हूँ
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