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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पिता ही है जो बच्चों को कभी रोने नहीं देता।
जरूरी चीज की घर में कमी होने नहीं देता।
हवाएँ रूह की ख़ुशबू उड़ा ले जायें नामुमकिन,
ख़ुशी के आँसुओं को भी पलक धोने नहीं देता।
छुपाले मुस्कुराहट में सभी दुःख दर्द वह दिल के,
कभी जाहिर किसी पर अपना ग़म होने नहीं देता।
जुटा रहता है वह दिन रात घर जन्नत बनाने पर,
निहाँ पुख्ता यकीं परिवार का खोने नहीं देता।
पड़े करनी मशक़्कत कितनी भी करता बिना बोले,
बिना भोजन कभी घरबार को सोने नहीं देता।
बखूबी जानता रखना चमन अपना वह ताज़ा दम,
पिता ताउम्र गुलशन ग़मजदा होने नहीं देता।
थपेड़े वक़्त के ‘विश्वास’ रखता अपने कांधों पर,
गमों का बोझ वह औलाद को ढ़ोने नहीं देता।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पिता ही है जो बच्चों को कभी रोने नहीं देता।
जरूरी चीज की घर में कमी होने नहीं देता।
हवाएँ रूह की ख़ुशबू उड़ा ले जायें नामुमकिन,
ख़ुशी के आँसुओं को भी पलक धोने नहीं देता।
छुपाले मुस्कुराहट में सभी दुःख दर्द वह दिल के,
कभी जाहिर किसी पर अपना ग़म होने नहीं देता।
जुटा रहता है वह दिन रात घर जन्नत बनाने पर,
निहाँ पुख्ता यकीं परिवार का खोने नहीं देता।
पड़े करनी मशक़्कत कितनी भी करता बिना बोले,
बिना भोजन कभी घरबार को सोने नहीं देता।
बखूबी जानता रखना चमन अपना वह ताज़ा दम,
पिता ताउम्र गुलशन ग़मजदा होने नहीं देता।
थपेड़े वक़्त के ‘विश्वास’ रखता अपने कांधों पर,
गमों का बोझ वह औलाद को ढ़ोने नहीं देता।
</poem>