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|रचनाकार=उत्पल डेका
|अनुवादक=दिनकर कुमार
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<poem>
'''प्रेम'''

किसी भी समय
खुद को पाया जा सकता है
पलक झपकते ही
मदिरा संग बातें की जा सकती है
छाया की तरह ।

'''घर'''

पिता का बुझा हुआ चेहरा
बाज़ार का थैला
माँ के सपने
सब लटकते रहते हैं अन्धेरे कोने में ।

'''भोजन'''

क्षुधा की लपटें जलाती हैं
मेरी माटी, मेरे खेत
मेरा देश ।

'''मृत्यु'''

किसी एक बसन्त में
टूटकर गिर जाता है
आख़िरी पत्ता ।

'''मूल असमिया भाषा से अनुवाद : दिनकर कुमार'''
</poem>
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