भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरानंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरानंद
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इन दिनों बहुत चर्चा में है जोशीमठ
उसके दरकते हुए
पहाड़ का रक्त कौन देखता है,
कोई नहीं,
कोई नहीं चाहता कि
उँगली उसकी तरफ उठे
ये हादसा एक दिन में नहीं हुआ
एक दिन में खोखला नहीं हो गया पहाड़
एक दिन में नहीं बहा
उसके नीचे का हज़ारों लीटर पानी
वहाँ रहने वाले लोग अब कहाँ जाएँगे
कोई नहीं जानता
कर्ज़ लेकर घर बनाना और
उसे दरकते हुए देखना
आसान नहीं होता
आज दुनिया देख रही है
वहाँ की हर तस्वीर
पत्थर में पड़ने वाली दरार
कलेजे में कब पड़ जाती है
यह वही जानता है
जिसका घर माचिस की
तीलियों की तरह बिखर रहा है
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरानंद
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इन दिनों बहुत चर्चा में है जोशीमठ
उसके दरकते हुए
पहाड़ का रक्त कौन देखता है,
कोई नहीं,
कोई नहीं चाहता कि
उँगली उसकी तरफ उठे
ये हादसा एक दिन में नहीं हुआ
एक दिन में खोखला नहीं हो गया पहाड़
एक दिन में नहीं बहा
उसके नीचे का हज़ारों लीटर पानी
वहाँ रहने वाले लोग अब कहाँ जाएँगे
कोई नहीं जानता
कर्ज़ लेकर घर बनाना और
उसे दरकते हुए देखना
आसान नहीं होता
आज दुनिया देख रही है
वहाँ की हर तस्वीर
पत्थर में पड़ने वाली दरार
कलेजे में कब पड़ जाती है
यह वही जानता है
जिसका घर माचिस की
तीलियों की तरह बिखर रहा है
</poem>