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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
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|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
रंग जब दिल में
उतर आते हैं
रूहानी हो जाते हैं

रंग नहीं बंटते धर्म में
इंसान बांट लेता है
अपने अपने
धर्मों की पताकाओं में
अपनी अपनी
सरहदों में

प्रकृति भी कहाँ
भेदभाव करती है
मुक्तहस्त लुटाती है
रंग ही रंग
फूलों में ,दरख़्तों में,
तितलियों में
खिल उठता है जंगल
खिल उठता है आसमान
इंद्रधनुषी रंगों से

दिल के रूहानी रंगों को
प्रकृति के मोहक रंगों को
संजोकर रखना
बेहद ज़रूरी है
वरना धरती
रंगहीन हो जाएगी।
</poem>
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