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{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुमने आज पुकारा मुझको
हो गए हर पल रंग सुनहरे
भीगा मन का तार तार
रंग गई सांझ सकारे होली
टेसू के फूलों ने रंग दी
चूनर मेरी झीनी झीनी
पुरवईया फागुन की लाई
फाग सुरीले ,गीत रसीले
भंवरों की टोली ने खेली
फागुन के फूलों से होली
उड़त गुलाल पीत रंग छाया
बेसुध कर गई भांग नशीली
कैसी तान ये छेड़ी प्रीतम
खुद मतवाली हो गई होली
रंग न जाने हिंदू-मुस्लिम
रंग न जाने काबा काशी
रंग उतर आते जब दिल में
रूहानी हो जाती होली
अब के बरस के फागुन में
बस यही दुआ है प्रभु तुझसे
मिट जाए नफ़रत की खाई
तब खिले प्रेम रंग की होली
</poem>
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|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
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<poem>
तुमने आज पुकारा मुझको
हो गए हर पल रंग सुनहरे
भीगा मन का तार तार
रंग गई सांझ सकारे होली
टेसू के फूलों ने रंग दी
चूनर मेरी झीनी झीनी
पुरवईया फागुन की लाई
फाग सुरीले ,गीत रसीले
भंवरों की टोली ने खेली
फागुन के फूलों से होली
उड़त गुलाल पीत रंग छाया
बेसुध कर गई भांग नशीली
कैसी तान ये छेड़ी प्रीतम
खुद मतवाली हो गई होली
रंग न जाने हिंदू-मुस्लिम
रंग न जाने काबा काशी
रंग उतर आते जब दिल में
रूहानी हो जाती होली
अब के बरस के फागुन में
बस यही दुआ है प्रभु तुझसे
मिट जाए नफ़रत की खाई
तब खिले प्रेम रंग की होली
</poem>