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{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यवान सत्य
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
गर मरज का कोई इलाज नहीं
तो शिफा की है एहतियाज नहीं
वस्ल पर जब भी बात करता हूँ
रोज कहता है वह कि आज नहीं
कोई भी है न दुनिया फानी में
वक्त की जिस पर गिरती गाज नहीं
कोई कितना बड़ा सिकन्दर हो
मौत से होता एहतिजाज नहीं
वायदा कर के पल में क्यों मुकरा
ये तलव्वुन तेरा मिज़ाज नहीं
साथ मैं अंत तक निभाऊँगा
बेवफाई मेरा रिवाज़ नहीं
पास दौलत है इक मुहब्बत की
औ' कोई पास तख्त-ओ ताज नहीं
मुझ पर रहमत है मेरे मौला की
मैं किसी का भी मोहताज नहीं
</poem>
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|संग्रह=
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गर मरज का कोई इलाज नहीं
तो शिफा की है एहतियाज नहीं
वस्ल पर जब भी बात करता हूँ
रोज कहता है वह कि आज नहीं
कोई भी है न दुनिया फानी में
वक्त की जिस पर गिरती गाज नहीं
कोई कितना बड़ा सिकन्दर हो
मौत से होता एहतिजाज नहीं
वायदा कर के पल में क्यों मुकरा
ये तलव्वुन तेरा मिज़ाज नहीं
साथ मैं अंत तक निभाऊँगा
बेवफाई मेरा रिवाज़ नहीं
पास दौलत है इक मुहब्बत की
औ' कोई पास तख्त-ओ ताज नहीं
मुझ पर रहमत है मेरे मौला की
मैं किसी का भी मोहताज नहीं
</poem>