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<poem>
जाड़े की हो गई विदाई
गरमी का स्वागत है, भाई !

सूरज अफ़सर बहुत कड़ा है
लगता है, गुस्सैल बड़ा है ।
इसीलिए तो छोड़ गए हैं
अपनी - अपनी सभी नौकरी ।
स्वेटर, मफ़लर, कोट, रजाई,
जाड़े की हो गई विदाई ।

छुट्टी अपनी सभी बिताकर
पंखा आया फिर ड्‍यूटी पर,
हवा ज़रा नाराज हो गई
फिर भी गरमी अच्छी लगती ।
गरमी आम खरबूजे लाई,
जाड़े की हो गई विदाई ।

लू ने अपना काम सम्भाला
ऐसा कुछ जादू कर डाला,
पानी जाकर कहीं छुप गया
धरती हुई सूखकर काँटा ।
बेचारी पर आफ़त आई,
जाड़े की हो गई विदाई ।
</poem>
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