भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमर पंकज |अनुवादक= |संग्रह=लिक्खा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमर पंकज
|अनुवादक=
|संग्रह=लिक्खा मैंने भोगा सच / अमर पंकज
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आज हूँ ख़ुद से ख़फ़ा मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे,
प्यार मेरा है जुदा मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे।

थे मरासिम, आशना फिर, फ़ासला अब दर्मियाँ है,
वक़्त का है फ़ैसला मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे।

मुब्तिला हूँ इश्क़ में और आशिक़ी का मरहला है,
हो न ग़म का दाख़िला मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे।

राख़ के इस ढेर से फिर आग भड़की और मेरा,
ये बदन शोला बना मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे।

बेवफ़ा कह लो ‘अमर’ को और मत आवाज़ दो तुम,
मर न जाऊँ सुन सदा मैं इसलिए हूँ दूर तुमसे।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,191
edits