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Kavita Kosh से
जितने रंग हैं उतनी गांठें।
रेशमी धानी चूनर में,
जितने रेशे उतने टांके।टाँके।
हिम-मुकुट मां माँ का पिघल रहा है,
आग की लपटों और बारूद की गर्मी से।
कोई पैरों पर वार कर रहा,
क्या करें हमारे घर को उसी से है
जलने का भय दिन - रात हर प्रहर।
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