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<poem>
पुतले भ्रष्टाचार के छल-प्रपंच में सिद्ध
नोच रहे हैं देश को राजनीति के गिद्ध

अरबों के मालिक हुए कल तक थे दरवेश।
नेता दोनों हाथ से लूट रहे हैं देश।।

बारी-बारी लुट रही जनता है मजबूर।
नेता हैं गोरी यहाँ, नेता हैं तैमूर।।

देख रहा है देश यह कैसे-कैसे दौर।
चोर-उचक्के बन गए शासन के सिरमौर।।

लल्लू जी मंत्री बने चमचे ठेकेदार।
जनता जाए भाड़ में अपना बेड़ा पार।।

सौदा किया प्रधान से, दिए करारे नोट।
पन्नी बाँटी गाँव में पलट गए सब वोट॥

सुविधाओं के सामने जनसंख्या विकराल।
सबका हिस्सा खा गये नेता और दलाल।।


बूड़ा आया गाँव में उजड़ गए सब खेत।
नेता राहत ले उड़े चलो बुकायें रेत।।

ज्ञान-ध्यान-सम्मान-सुख सबका साधन अर्थ।
पूजा करिए अर्थ की बिना अर्थ सब व्यर्थ।।

सत्य-अहिंसा त्याग-तप बीते दिन की बात।
जहाँ देखिए छद्म-छल, लूट, घात-प्रतिघात।।
</poem>
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