भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे वर्ष नव / शिवजी श्रीवास्तव

1,977 bytes added, बुधवार को 03:25 बजे
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शिवजी श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= शिवजी श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
करें अगवानी
उतारें आरती
और दें शुभकामनाएँ हम परस्पर
हास की, उल्लास की
मधुमास की
करें शुभ संकल्प सारे
प्रिय अभी
वक्त का रथ
लौटकर
आता नहीं है फिर कभी
क्या पता कब
काल हो शिव -सम सदय
राह में मंगल बिखेरे
दे अभय
और कब हो रुष्ट
बनकर रुद्र
भीषण करे ताण्डव
मचे विप्लव।

चलो हम सब करें
मिलकर प्रार्थनाएँ
हँसें कलियाँ
और भौंरे गुनगुनाएँ
उड़ सकें आकाश में
निर्द्वंद्व चिड़ियाँ
बाज के दुःस्वप्न
उनको ना डराएँ
ग्रस न पाए
खिलखिलाती धूप को
आतंक का कोहरा
कर न पाएँ
आँधियाँ उन्माद की
रक्तिम धरा

हर दिशा में
हो छटा ऋतुराज की
मृदु समीरण चलें मंथर
गंध की ले पालकी
फले- फूले वृक्ष पर हों
नीड़ सुंदर
चिरई-चिरवा कर रहे हों
केलि मनहर
भोर से ही चहचहाएँ
करें कलरव
इस तरह रहना बने
तुम वर्ष भर
नवल रथ पर आ रहे
हे वर्ष नव।
-0-
</poem>