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कीचक: सुख चाहवै तै दासी बता, करूँ मालकणी घरबार की
दासी: मैं जाणूँ थी होशियार सै, लग्या बात करण बेकार की
कीचक: रहैं तेरे नंगे पैर उभाणे, पड़ रहे बासी टुकड़े खाणे,
वस्त्र तू रही पहर पुराणे, ल्याद्यूँ साड़ी डेढ हज़ार की ।.1.।
दासी: मैं दिल कपटी नै समझाल्यूँ, अपणा ध्यान भजन मैं लाल्यूँ,
मिलज्या जिसा बख्त पै खाल्यूँ, ना भूखी खाँड कसार की
कीचक: मिलै सुख मेरे पास रहणे मैं, चाल्लूँ सदा तेरे कहणे मैं,
तनै लटपट कर द्यूँ गहणे मैं, म्हारे धोरै हाट सुनार की
दासी: नहीं कदे मिथ्या बकणा चाहिए, कुछ पर्दा भी रखणा चाहिए,
तन कपड़े से ढकणा चाहिए, ना चाहना हार सिंगार की ।2।
कीचक पिया बिना मरोड़ किसी, चाँद बिन सून्नी रहै निशि,
बिन बालम की गौरी इसी, जिसी घोड़ी बिना सवार की
दासी: मेरे मद जोबन के पाळी, हैं पाँच चमन के माळी,
बिन सेवा नहीं मिलती ताळी, सतगुरु ज्ञान विचार की ।3।
कीचक: निहालचन्द जो करते कुर्बानी, उनकी ना मिटती नाम निशानी,
एक दिन उड़ज्या भंवर सैलानी, या जिन्दगानी दिन चार की
दासी: निहालचन्द कर्मफळ पावैं, झूठा दोष राम कै लावैं,
संत महात्मा ऋषि बतावैं, पर नार धार तलवार की ।4।
</poem>
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