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विरासत / अशोक अंजुम

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|संग्रह=अशोक अंजुम की मुक्तछंद कविताएँ / अशोक अंजुम
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<poem>
मैं जब-जब
कमरे का कबाड़ साफ़ करता हूँ
मिल जाते हैं ढेर से
काँच के गोल, चैकोर
रंगबिरंगे सुन्दर टुकड़े
मैं सहेज कर रख लेता हूँ
मेरी योजना है
इन्हें करीने से जोड़कर
एक बेमिसाल कलाकृति बनाने की
मेरे पिताजी भी यही चाहते थे
कर न सके
मैं भी योजना ही बनाता रहूँगा क्या
भूलता रहूँगा
रखता रहूँगा बार-बार
सहेज कर
लकड़ी के पुराने बक्से में!
जब-तब मेरे बच्चे
कमरे का कबाड़ साफ़ करेंगे
उन्हें भी मिलेंगे
काँच के यही गोल, चैकोर
रंगबिरंगे सुन्दर टुकड़े !
</poem>
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