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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
बर्छियों के
रात दिन पहरे हुए
मर्म में
जो घाव थे
गहरे हुए।
हित
जिसका भी किया,
खून
उसने ही पिया,
दर्द में अश्रु हमारे
कौन देखे
साथ के
सारे पथिक बहरे हुए।
फूल पथ में,
अहर्निश
हमने बिछाए ,
शूल बनकर
सभी पथ में
मुस्कुराए ।
दर्द सब वे
अतिथि- से ठहरे हुए
'''13/12/23'''
-0-
</poem>
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|संग्रह=
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बर्छियों के
रात दिन पहरे हुए
मर्म में
जो घाव थे
गहरे हुए।
हित
जिसका भी किया,
खून
उसने ही पिया,
दर्द में अश्रु हमारे
कौन देखे
साथ के
सारे पथिक बहरे हुए।
फूल पथ में,
अहर्निश
हमने बिछाए ,
शूल बनकर
सभी पथ में
मुस्कुराए ।
दर्द सब वे
अतिथि- से ठहरे हुए
'''13/12/23'''
-0-
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