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|रचनाकार=विनीत पाण्डेय
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<poem>
धीरे-धीरे घपलों की सब कारस्तानी आ जाएगी
और सियासत में जो होती खींचातानी आ जाएगी
तू कुर्सी के इस जादू को हैरत से क्या देख रहा है
तुझे बिठा दें तो तुझको भी बात घुमानी आ जाएगी
उसने जो भी सितम किए हैं हम तो भूल नहीं पाएँगे
वक्त बदलते उसको भी हर याद पुरानी आ जाएगी
कितनी अच्छी लगती हैं ना भोली बातें इन बच्चों की
साथ बड़ों के रह कर इनको बात बनानी आ जाएगी
शहर में उसके आए अरसे बाद मगर ये कब सोचा था
आँखों के आगे सूरत जानी पहचानी आ जाएगी
</poem>
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धीरे-धीरे घपलों की सब कारस्तानी आ जाएगी
और सियासत में जो होती खींचातानी आ जाएगी
तू कुर्सी के इस जादू को हैरत से क्या देख रहा है
तुझे बिठा दें तो तुझको भी बात घुमानी आ जाएगी
उसने जो भी सितम किए हैं हम तो भूल नहीं पाएँगे
वक्त बदलते उसको भी हर याद पुरानी आ जाएगी
कितनी अच्छी लगती हैं ना भोली बातें इन बच्चों की
साथ बड़ों के रह कर इनको बात बनानी आ जाएगी
शहर में उसके आए अरसे बाद मगर ये कब सोचा था
आँखों के आगे सूरत जानी पहचानी आ जाएगी
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