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एक दिन मामला यों बिगड़ा
कि मारी हमारी ही घरवाली से
हो गया हमारा झगड़ा
स्वभाव से मैं नर्म हूँ
जल्दी-जल्दी में
चल दिया अटैची उठाकर
खोली कांपुर कानपुर जाकर
देखा तो सिर चकरा गया
पजामे की जगह
तब क्या खाक कविता पढ़ते
या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर
मंच पर पटकतेचढ़ते
एक माह से लगातार
अंग्रेज़ी बोलती हो
जब भी बाहर जाता हूँ
बड़ी आदा अदा से कहती हो-"टा....टा"
और मुझे लगता है
जैसे मार दिया चांटा
वो दिन याद करो
जब काढ़्ती काढ़ती थीं घूंघट
दो बीते का
अब फुग्गी बनाती हो फीते का
तो वो बोला-
"आप चिल्ला रहे हैं जब से।"
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