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Kavita Kosh से
रंग व्हाईट हो
स्लीवलैस कुर्ता हो
नीचा और टाएट टाइट हो
चोटियो का रिवाज़ भी हो गया पुराना
आजकल है जूड़ो का ज़माना
नक़ली भी असली दिखते है
एक तुम भी ले आना
कपड़े बच्चो के लिए सिलेंगे
वर्ना पुराने कपड़ो में
तुम जन्मी थीं मार्च में
तुम्हारे बाप थे जेल में
फिर तंग कपड़ो में, उम्र
बच्ची नहीं हो जाती
छूटीं
वियतनाम पर
अमरीकी बम -सी फूटीं-"तुम भी कोइ कोई आदमी होमेर मज़ाक मेरा मज़ाक़ उड़ाते हो
अपनी ही औरत को
बुढ़िया बुलाते हो
सड़को पर
बागों में
तांगों में
मगर यहाँ
ऐसे भाग्य कहाँ
पड़ौस के गुप्ता जी के बच्चे हैं
मज़ाल है जो कह दें
औरत से आधी बात
पलको पर बिढ़ाए बिठाये रहते हैं
दिन-रात
और एक तुम हो
मनाऊँगी, मनाऊँगी
ज़रूर-ज़रूर मनाऊँगी।
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