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अप्रैल 07, 2007 शनिवार को जेसीज भवन इटहरी में कुमुद अधिकारीद्वारा अनूदित व सम्पादित श्री तेजेन्द्र शर्मा की बारह कहानियों का संग्रह पासपोर्टका रङहरू का विमोचन कार्यक्रम आयोजन साहित्यसञ्चार समूह इटहरी ने किया। कृति का विमोचन वरिष्ट कवि एवं साहित्यकार श्री कृष्णभूषण बल ने किया। विमोचित कृति के समीक्षकों में से तीन प्रमुख थे – श्री कृष्ण धरावासी, श्री भूषण ढुङ्गेल और श्रीमती ज्योति जङ्गल। उनके विचार सारांश में इस प्रकार थे-
 
श्री धरावासीः
 
1. तेजेन्द्र की कहानियां बहुत प्रभावशाली व सामयिक हैं। उनकी कहानियां पढ़ने से लगता है, हम खुद उनके पात्र हैं और वैसी ही जिन्दगी जी रहे हैं। जो हम भोग रहे हैं वही सत्य है। उनकी कहानियों में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने वही लिखा है जो देखा हैं जो भोगा है। वे नोस्टाल्जिया और कोरी कल्पना के शिकार नहीं हैं।
 
2. उनकी कुछ कहानियों के थिम पश्चिमी परिवेश में नयीं लगती हैं पर हैं नहीं। जैसे ‘कोखको भाडा‘ में पैसे लेखर बच्चा जनने की बात श्रद्धेय मदनमणि दीक्षित के (नेपाली) उपन्यास ‘माधवी‘ में पहले ही आ चुकी है। उस उपन्यास में श्यामकर्ण घोड़े के बदले कोख को किराए पर लगाने कि बात कही गई है। पर इस कहानी में कोख किराए में देने का मकसद महज प्यार है।
 
3. ‘पासपोर्टका रङहरू‘ की कहानियां पढ़ने से ऐसा लगता है कि ये कहानियां हिन्दी में न लिखकर नेपाली में ही लिखी गई हों। यहीं पर रुपान्तरकार ने अपनी खूबियां दिखाई हैं। यदि पात्रों व जगहों के नाम बदल दिए जाएं तो वे पूरी की पूरी नेपाली कहानियां बनती हैं।
 
4. कहानियों में बहुत सी जगहों पर हिन्दी शब्द हैं। रूपान्तरकार का उद्देश्य मूल हिन्दी के स्वाद को बरकरार रखना हो सकता है पर यह जरूरी नहीं था। फिर भी कोई किताब सौ फीसदी ठीक भी तो नहीं हो सकती।
 
श्री भूषण ढुङ्गेलः
 
1. तेजेन्द्र की कहानियों में प्रवासी भारतियों की पीडा़ ज्यों कि त्यों दिखाई पड़ती है। ‘पासपोर्टका रङहरू‘ कहानी में इस बात को दर्शाया गया है की एक भारतीय कैसे जीता है पराए देश में।
 
2. मानवीय संबंधों के तानेबाने देखने को मिलते हैं उनकी कहानियों में। लोगों की भीड़ में अपनी पहचान ढूंढ़ते पात्र देखकर लगता है की हम सब भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
 
3. कुमुद अधिकारी ने इन बारह शक्तिशाली कहानियों को नेपाली में अनुवाद कर नेपाली साहित्य को बहुत इज्जत दी है। वैसे मुझे नहीं लगा की मैं हिन्दी कहानियां पढ़ रहा हूं। उनका यह अनुवाद कार्य नेपाली और हिंदी साहित्य को जोड़ने के लिए एक और सेतु सिद्ध होगा।
 
श्रीमती ज्योति जङ्गलः
 
1. मैं तेजेन्द्र की कहानियों से बहुत प्रभावित हुई हूं या यों कहें भीतर तक हिल गई हूं। मैं खुद औरत हूं पर अब लगता हैं की मैंने औरत की मजबूरियां और दर्द को समझा ही नहीं। उनकी कहानियां पढ़ने पर ऐसा लगा मानों उन सब कहानियों की औरत पात्र मैं ही हूं, वे सब दर्द मेरे हैं। औरतों की भावनाओं और दर्द को इस कदर उजागर करने के लिए तेजेन्द्र को बहुत बधाई।
 
2. कुमुद की सायद यह दूसरी अनुवाद कृति है। उनकी पहली कृति ‘जिंदगी एक फोटो-फ्रेम‘ बहुत से मायनों में सफल रही है। इसमें भी श्री अधिकारी ने वही उत्साह और दिलेरी दिखाई है।
 
कार्यक्रम के प्रमुख अथिति श्री कृष्णभूषण बल ने अपनी बात में रुपान्तरकार के उत्साहको सराहते हुए सुझाव दिया कि हर पाँच कहानियां अनुवाद करने के वाद वे खुद अपनी एक कहानी लिखें। साथ ही साथ उन्होंने श्री तेजेन्द्र शर्मा को इतनी अच्छी कहानियों को नेपाली में रूपान्तर करने के लिए अनुमति प्रदान करके नेपाली पाठकों का जो सम्मान किया उसके लिए ढेर सारी बधाइयां दी और धन्यवाद व्यक्त किया।
 
कार्यक्रम के समापन वक्तव्य में सभापति श्री मनु मंजिल ने रूपान्तरकार की हिम्मत को दाद देते हुए कहा कि ऐसे मुश्किल कार्य में हाथ डालकर कुमुद ने काबिले तारिफ काम किया है। साथ ही उन्होंने लेखक श्री तेजेन्द्र शर्मा का भी तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।
 
कार्यक्रम में साहित्यकार विवश पोखरेल, रश्मिशेखर, कृष्ण बराल, जी.बी लुगुन, तेराख, लीला अनमोल, दीपा अविरल, समुन्द्रा शर्मा, टीका सुवेदी, सुजात, वैदिक अत्रि, डम्बर घिमिरे, शर्मिला खड़का, रीता खत्री, शालिकराम ढकाल, कालीप्रसाद सुवेदी, छविनाथ रिजाल, रुद्र उप्रेती, ठमनाथ लम्साल, कृष्णविनोद लम्साल, चूड़ावसन्त लम्साल, टीका आत्रेय, टोलनाथ काफ्ले, रीता ताम्राकार आदि वरिष्ठ तथा सक्रिय साहित्यकारों के अलावा तकरीबन २५० साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।
 
इसके अलावा प्राध्यापक डा. गोपाल भण्डारी, डा. टङ्क नेउपाने की उपस्थिति विशेष अतिथि के रूप मे थी।
कार्यक्रमका संचालन कवि और सप्तकोसी एफ.एम. साहित्यिक कार्यक्रम प्रस्तोता श्री एकू घिमिरे ने किया।
 
दिनेश पौडेल,
 
सचिव,
 
साहित्यसञ्चार समूह
 
इटहरी, नेपाल।
 
Email: nibandhakar@yahoo.com
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