भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मांडूक्योपनिषद / मृदुल कीर्ति

8,441 bytes added, 14:11, 5 दिसम्बर 2008
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति}} '''ॐ श्री परमात्मने नमः'''<br> '''मांडू...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}


'''ॐ श्री परमात्मने नमः'''<br>
'''मांडूक्योपनिषद'''<br>
'''शान्ति पाठ'''<br>
हे देव गण ! कल्याण मय हम वचन कानों से सुनें,<br>
कल्याण ही नेत्रों से देखें , सुदृढ़ अंग बली बनें।<br>
आराधना स्तुति प्रभो की हम सदा करते रहे,<br>
मम आयु देवों के काम आये , हम नमन करते रहे।<br>
हे इन्द्र ! मम कल्याण को कल्याण का पोषण करें,<br>
हे विश्व वेदाः ! पूषा श्री मय ज्ञान संवर्धन करें।<br>
हे बृहस्पति ! हे अरिष्ट नेमिः , स्वस्ति कारक आप हैं,<br>
सब त्रिविध ताप हों शांत जग के देते जो, संताप हैं।<br><br>


<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
यही ॐ ऐसा परम अक्षर , चरम अविनाशी महे,<br>
विश्वानि जग उसकी महिमा ही महिमा, प्रकृति गरिमा का कहे.<br>
आगत विगत ओंकार कालातीत जग का मूल है,<br>
आद्यंत हीन, अचिन्त्य कारण , सूक्ष्म और स्थूल है॥ [ १ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
विश्वानि जग सब ब्रह्म मय और ब्रह्म से परिपूर्ण है,<br>
दृष्टव्य जो भी जगत में, सब ब्रह्म मय सम्पूर्ण है.<br>
यह ब्रह्म, वेदों में कथित है कि चार पैरों वाला है,<br>
सर्वात्मा ही तो ब्रह्म पर ब्रह्म विश्व धारण वाला है॥ [ २ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
जाग्रत अवस्था की तरह, सब जगत प्रभु का शरीर है,<br>
भूः , भुवः आदि लोक सप्तम अंग प्राण समीर हैं.<br>
सब ज्ञान कर्मेन्द्रियाँ ह्रदय व् प्राण मुख है अगम्य का,<br>
स्थूल भोक्ता , ज्ञाता धारक , पाद पहला ब्रह्म का॥ [ ३ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
एक स्वप्नमय यह सूक्ष्म जग ही , जिसका वास निवास है,<br>
संकल्प मय ऋत ज्ञान जिनका , सूक्ष्म जग आवास है.<br>
सप्तांग उन्नीस , मुखों वाला , रूप बृहत अगम्य का,<br>
आत्मा भू अखिलेश तेजस , द्वितीय पाद है ब्रह्म का॥ [ ४ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
ज्यों सुप्त मानव , कामना व् स्वप्न हीन सुषुप्ति है,<br>
इस सुषुप्तिवस्था सम ही प्रलय काल प्रवृति है.<br>
विज्ञान मय , आनंद मय , शुभ ज्योति मुख है अगम्य का,<br>
आनंद का एकमेव भोक्ता, तृतीय पाद है ब्रह्म का॥ [ ५ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
विश्वानि विश्व का मूल कारण एक सर्वेश्वर अहे,<br>
सर्वज्ञ, अन्तर्यामी , सबके प्राण धारक शुचि महे.<br>
उत्पत्ति स्थित प्रलय मूल में, आत्म भू अखिलेश है,<br>
अतः प्राज्ञ से वैश्वानर , सब रूप में सर्वेश है॥ [ ६ ] <br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
प्रज्ञं, अप्रग्यं, बाह्य अन्तः, प्रज्ञहीन , अचिन्त्य है,<br>
अदृश्य , अग्राह्यम, अव्यह्रुत , अद्वितीय तत्व व् नित्य है.<br>
शुभ, शुचि, पंचातीत शांत है, मर्म अगम अगम्य का,<br>
ज्ञातव्य प्रभु, अद्विति तत्व ही चौथा पाद है ब्रह्म का॥ [ ७ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
'अ' 'उ' व 'म' ये तीनों मात्राएँ ही तीनों पाद हैं,<br>
उनके तीनों पाद ॐ की मात्राएँ ब्रह्म नाद हैं.<br>
परमात्मा इन तीनों मात्राओं से युक्त ओंकार है,<br>
इनका समन्वय ही ब्रह्म की आराधना का प्रकार है॥ [ ८ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
परिपूर्ण परमेश्वर का पहला पाद 'अ' ही आकार है,<br>
यह शब्द व्यंजन, वर्ण , स्वर, जड़ तत्व ,जग का आकार है.<br>
सम्यक जो जाने वैश्वानर, ऐसे अकार विराट की,<br>
इच्छाएं पूर्ण प्रधान पायें , वह कृपा सम्राट की॥ [ ९ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्रा द्वितीय 'उ' उकार उत्कृष्ट है,<br>
जो स्वप्न के सम सूक्ष्म है, यह उसका रूप विशिट है.<br>
'उकार' ज्ञान की प्रथा उन्नत जो करे उस कुल में भी,<br>
जानते हिरण्यगर्भ रूपी, ब्रह्म तेजस को सभी॥ [ १० ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
ओंकार की मात्रा तृतीया 'म' से मापक ध्वनित है,<br>
'म' में विलीनीकरण 'म' में 'अ' व 'उ' सन्निहित है.<br>
कारण, सुषुप्ति जग अधिष्ठाता में ॐ मकार है,<br>
'म' प्राज्ञ व् सर्वज्ञ ब्रह्म का पाद तृतीया प्रकार है॥ [ ११ ]<br><br>
</span>

<span class="upnishad_mantra">
</span>

<span class="mantra_translation">
मात्रा रहित ओंकार रूपातीत शिव है विशिष्ट है,<br>
अथ जाने जो वह आत्मा परमात्मा में प्रविष्ट हैं.<br>
मन वाणी का नहीं विषय अतः मर्म अगम अगम्य का,<br>
निगुण, निराकारी स्वरुप, चौथा पाद है ब्रह्म का॥ [ १२ ]<br><br>
</span>