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== राष्ट्रीय कवि संगम-प्रेस विज्ञप्ति ==
नई दिल्ली। बीती 15-16 दिसम्बर 2007 को स्वाधीनता संग़्राम की 150 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक अनूठे कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। नई दिल्ली के छतरपुर, महरौली स्थित अध्यात्म साधना केन्द्र में आयोजित इस कवि सम्मेलन में देश के साढ़े तीन सौ जाने-माने कवियों ने हिस्सा लिया। देश के सभी प्रान्तों से आये इन कवियों ने दो दर्जन से भी ज्यादा भाषाओं और बोलियों में काव्य-पाठ करके लोगों का मन मोह लिया। विशेष रूप से जम्मू कश्मीर, सिक्किम, आसाम, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश जैसे सीमावर्ती प्रदेशों से आये कवियों को लोगों ने खूब पसन्द किया। इस दो दिवसीय कवि सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय कवि संगम के बैनर तले ‘राष्ट्र जागरण-धर्म हमारा’ शीर्षक के तहत किया गया।
कार्यक्रम में स्वाधीनता संग्राम में कवियों और कविताओं के योगदान पर भी सारगर्भित चर्चा की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यात्म साधना केन्द्र के निदेशक स्वामी धर्मानन्द, आयोजन के मार्गदर्शक श्री इन्द्रेश कुमार, कार्यक्रम के संयोजक श्री जगदीश मित्तल, सहसंयोजक श्री मनमोहन गुप्ता, श्री अशोक गोयल, श्री गजेन्द्र सोलंकी, मोहम्मद अफजाल और राजेश चेतन ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर कवि चिराग जैन द्वारा सम्पादित स्मारिका "जागो फिर एक बार" का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में आचार्य देवेन्द्र देव ने अपने सुमधुर कण्ठ से माँ सरस्वती की वन्दना प्रस्तुत की तथा कवि श्री नरेश नाज ने अपना गीत 'आजादी के उन्ही पुराने गानों की पहले से भी आज जरुरत ज्यादा हैं' प्रस्तुत कर उदघाटन समारोह को गरिमा प्रदान की। जबकि प्रसिद्ध फिल्मी गीतकार व संगीतकार रवीन्द्र जैन ने कई फिल्मों के चुने हुए देशभक्ति के गीत गाये। जिनमें शहीद पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का गीत ‘सरफरोशी की तमन्ना’ प्रमुख रहा।
कवि संगम के मार्गदर्शक इन्द्रेश कुमार ने अपने उदबोधन में कहा कुछ लोग और आन्दोलन वक्त के सांचे में ढल जाते हैं, पर राष्ट्रीय कवि संगम के कवि राष्ट्र जागरण की कविताओं के द्वारा वक्त के सांचे बदलने में सफल होंगे। उन्होंने कवित्व को प्रभु का वरदान और कविता को उस वरदान से निकली हुई गंगा बताया। 16 दिसम्बर बंगलादेश विजय दिवस की याद दिलाते हुए कहा कि कवियों के गीत सीमा पर बैठे जवानों को देश पर मर मिटने की भावना जगाने का काम करती हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर साढ़े तीन सौ कवियों का काव्य-पाठ अपने आप में ऐतिहासिक और राजधानी में अब तक का सबसे बड़ा साहित्यिक आयोजन था। देश-विदेश से आये कवियों ने आजादी के नायकों को कविताओं से याद किया। 1857 के बाद आजादी के परवानों को याद करने की यह अनुपम और अनूठी पहल थी।
कार्यक्रम के संयोजक जगदीश मित्तल ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में कवियों और कविताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1857 से अब तक के डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास साक्षी है कि क्रान्तिकारियों के साथ-साथ कवियों ने अपनी लेखनी एवं ओजस्वी स्वर के माध्यम से न केवल देश भर में आजादी की अलख जगाई अपितु जन-जन में क्रान्ति का संचार किया। यह कविताओं की ही शक्ति थी कि बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित “वन्दे मातरम्” गीत आजादी के दीवानों का मंत्र बन गया। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी”, क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का गीत “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” आदि गीत इस आहुति के बेमिसाल उदाहरण है। वर्तमान परिवेश में भी युवा पीढ़ी को राष्ट्र एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्व का बोध कराने के लिये कवियों की कलम, राष्ट्र जागरण एवं निर्माण में आज भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।
सांसद और कवि श्री सत्यनारायण जटिया और कविवर श्री छैल बिहारी वाजपेयी 'बाण' तथा कवि कमलेश मौर्य मृदु ने भी श्रोताओं की तालियाँ बटोरी। राष्ट्रीय कवि संगम की भावनाओं को उल्लेखित करने वाली कमलेश मौर्य ‘मृदु’ की पंक्तियों को लोगों ने खूब सराहा –
जीवन मूल्यों को जो अपनी रचना का आधार बनायेगा
भारत के जीवन दर्शन को लेखन में अपनायेगा
मानवतावादी चिन्तन दे राष्ट्रीय भाव पनपायेगा
वह कलाकार कवि लेखक आराधक ही पूजा जायेगा
आयोजन में डा॰ राजवीर सिंह क्रान्तिकारी, देवेन्द्र देव, अब्दुल अय्यूब गौरी, गजेन्द्र सोलंकी, शहनाज हिन्दुस्तानी, मदन गोपाल विरधरे ‘मार्तण्ड’, राजेश चेतन, मदन मोहन ‘समर’, डा॰ प्रियंका सोनी, सुधा अरोड़ा, श्रीमती डा॰ अजीत गुप्ता, अर्जुन सिसौदिया, श्रीमती अमिया क्षेत्री, अमर बानिया ‘लोहोरो’, थम्मन नवबाग, श्याम तालिब, दिवाकर हेगड़े, लाड़ सिंह गुर्जर, मनोज कुमार ‘मनोज’, श्रीकांत श्री, कुमार पंकज, बृजेश द्विवेदी, पंकज फनकार, तौफीक सलाम आदि कवियों ने वर्तमान चुनौतियों और ज्वलन्त प्रश्नों का समाधान अपनी कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।
समारोह में विश्वविख्यात कवि और कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य ने भारत माता की आरती का अपना चिर परिचित कार्यक्रम प्रस्तुत किया। अपने कार्यक्रम के दौरान कवि धर्म के प्रति सचेत करते हुए बाबा ने कहा कि "फिर मत कहना कवियों ने ना अपना धर्म निभाया हैं, हम बोलेंगे गीत ये हमने बार-बार दोहराया हैं" अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार बाबा ने भारत माँ का रंगीन आशु चित्र बनाकर आरती का गायन किया। इस अवसर पर सैकड़ों लोगों ने 108 दीपकों से माँ भारती की आरती उतारी। कार्यक्रम का सफल बनाने में सहसंयोजक अशोक गोयल तथा राष्ट्रवादी मुस्लिम आन्दोलन के राष्ट्रीय सम्पर्क प्रमुख गिरीश जुयाल, मुहम्मद अफजाल, चिराग जैन, पंकज गोयल, राजेश पथिक, सुनील मल्होत्रा तथा अनिल गर्ग का विशेष योगदान रहा। विशेष रूप से इस अवसर पर पधारे देश के सुप्रसिद्ध कथावाचक श्रद्धेय संजीव कृष्ण ठाकुर ने भी कवि संगम के कार्य को शुभकामनायें दी। वरिष्ठ कवि कृष्ण मित्र, प्रान्त संघचालक रमेश प्रकाश, बांके लाल गौड़ आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। जिन संस्थाओं के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, उनमें संस्कार भारती, भारत तिब्बत सहयोग मंच, राष्ट्रवादी मुस्लिम आन्दोलन, अक्षरम्, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिशा फाउण्डेशन, हिन्दी यू॰ एस॰ ए॰, हिमालय परिवार, अखिल भारतीय साहित्य परिषद शामिल हैं।
राष्ट्रीय कवि संगम राष्ट्र संतों और वरिष्ठ कवियों के मार्गदर्शन में भविष्य में भी कार्य करता रहेगा। इस अवसर पर कार्यकारिणी की घोषणा भी की गई, जिसमे इन्द्रेश कुमार मार्गदर्शक, जगदीश मित्तल संयोजक, पूर्व मन्त्री एवं सांसद सत्यनारायण जटिया, अशोक गोयल, मुहम्मद अफजाल, राजेश चेतन, मनमोहन गुप्ता, गिरीश जुयाल, ॠतु गोयल, प्रवीण आर्य, बांके लाल गौड़ तथा कमलेश मौर्य को सदस्य चुना गया। अध्यात्म साधना केन्द्र के प्रबन्ध न्यासी श्री सम्पत मल नाहाटा तथा निदेशक धर्मानन्द जी ने यह कार्यक्रम वर्ष 2008 में अध्यात्म साधना केन्द्र छतरपुर में ही पुनः करने की आयोजकों से विनती की तथा धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए कहा कि अणुव्रत का यह स्थान सदैव कवि संगम के लिए उपलब्ध रहेगा।
== राजेश चेतन को कलमदंश सम्मान 2007 ==
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