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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवनेन्द्र पवन }} [[Category:ग़ज़ल]] <poem> ख़ून ऐसा मुँह लगा ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=पवनेन्द्र पवन
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ख़ून ऐसा मुँह लगा है जंगलों को पार कर
गाँव तक आने लगे हैं भेड़िये अब मार पर
ख गईं चूज़ों को घर की बिल्लियाँ, परिवारजन-
झाड़ते फिरते रहे आक्रोश सब बटमार पर
हाथ काटा था मेरे दादा का जिस तलवार ने
मेरा पोता मारता है हाथ उस तलवार पर
कोई 'अभिमन्यु' निहत्था जाए न इस व्य़ूह में
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर खलिहान अपना तो जला डाला गया
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.
</poem>
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|रचनाकार=पवनेन्द्र पवन
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ख़ून ऐसा मुँह लगा है जंगलों को पार कर
गाँव तक आने लगे हैं भेड़िये अब मार पर
ख गईं चूज़ों को घर की बिल्लियाँ, परिवारजन-
झाड़ते फिरते रहे आक्रोश सब बटमार पर
हाथ काटा था मेरे दादा का जिस तलवार ने
मेरा पोता मारता है हाथ उस तलवार पर
कोई 'अभिमन्यु' निहत्था जाए न इस व्य़ूह में
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर खलिहान अपना तो जला डाला गया
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.
</poem>