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Kavita Kosh से
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।<br> <br>
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं लिखूं हिन्दी ।<br>
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br><br>
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br>
करुं में प्रान प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br><br>
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br>
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br><br>
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