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धूल / प्रयाग शुक्ल

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|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।
 
तिनके । टुकड़े कांच के । उड़कर कहीं से
 
चले आये मकड़ी के जाले के तार ।
 
पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।
 
चमकती है धूल ।
 
फिर गिरती हैं
 नन्हीं-नन्हीं बूँदेंबूंदें
उठती है धूल में पड़ी विस्मृत चीज़ों
 
से एक महक ।
</poem>
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