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{{KKRachna
|रचनाकार=सुन्दरचन्द ठाकुर
|संग्रह= किसी रंग की छाया / सुन्दरचन्द ठाकुर
}}
<Poem>
वे कौन सी तब्दीलियाँ थीं परम्पराओं में
कैसी थीं वे जरूरतें
सभ्यता के पास कोई पुख़्ता जवाब नहीं
गृहविज्ञान आखिर पाठ्यक्रम में क्यों शामिल हुआ।
वे ऐसा कौन सी तब्दीलियां थीं परंपराओं में<br>सा था घर का विज्ञानकैसी थीं वे जरूरतें<br>जिसे घर से बाहर सीखना था लड़कियों कोसभ्यता उन्हें अपनी माँओं के पास कोई पुख्ता जवाब नहीं <br>पीछे-पीछे ही जाना थागृहविज्ञान आखिर पाठ्यक्रम अपने पिताओं या उन जैसों की सेवा करनी थीआँगन में क्यों शामिल हुआ।<br><br>तुलसी का फिर वही पुराना पौधा उगाना थाउन्हीं मँगल बृहस्पतिशुक्र और शनिवारों के व्रत रखने थेउसी तरह उन्हें पालने थे बच्चेऔर बुढापा भी उनका लगभग वैसा ही गुज़रना था।
ऐसा कौन सा था घर का विज्ञान<br>सत्रह -अठारह साल की चँचल लड़कियाँजिसे घर से बाहर सीखना था लड़कियों को<br>गृहविज्ञान की कक्षाओं में व्यँजन पकाती हैंउन्हें अपनी मांओं बुनाई-कढ़ाई के पीछेनए-पीछे ही जाना था<br>नए डिज़ाइन सीखती हैंअपने पिताओं या उन जैसों जैसे उन्हें यक़ीन होउनके जीवन में वक़्त की सेवा करनी थी<br>एक नीली नदी उतरेगीआंगन उनका सीखा सब-कुछ कभी काम आएगा बाद में।वे तितलियों के रंग के बनायेंगी फ्रॉकतितलियाँ वे फ्रॉक पहन उड़ जायेंगीवे अपने रणबाँकुरों के लिए बुनेंगी स्वेटर दस्तानेरणबाँकुरे अनजाने शहरों में तुलसी का फिर वही पुराना पौधा उगाना था<br>घोंसले जमायेंगेउन्हीं मंगल बृहस्पतिशुक्र वे गंध और शनिवारों स्वाद से महकेंगीआग और धुआँ उनका रंग सोख लेंगेकहीं होंगे शायद उनकी रुचि के व्रत रखने थे<br>बैठकख़ानेउसी तरह उन्हें पालने थे बच्चे<br>रंगीन परदों और डिजाइनदार मेज़पोशों से सजे हुएकितनी थका टूटन और बुढापा भी उनका लगभग वैसा ही गुजरना था। <br><br>उदासी होगी वहाँ।
सत्रह -अठारह साल की चंचल लड़कियां<br>गृहविज्ञान की कक्षाओं में व्यंजन पकाती हैं<br>बुनाई-कढ़ाई के नए-नए डिजाइन सीखती हैं<br>जैसे उन्हें यकीन हो<br>उनके जीवन में वक्त की एक नीली नदी उतरेगी<br>उनका सीखा सबकुछ कभी काम आएगा बाद में.<br>वे तितलियों के रंग के बनायेंगी फ्रॉक<br>तितलियं वे फ्रॉक पहन उड़ जायेंगी<br>वे अपने रणबांकुरों के लिए बुनेंगी स्वेटर दस्ताने<br>रणबांकुरे अनजाने शहरों में घोंसले जमायेंगे<br>वे गंध और स्वाद से महकेंगी<br>आग और धुआं उनका रंग सोख लेंगे<br>कहीं होंगे शयगद उनकी रुचि के बैठकखाने<br>रंगीन परदों और दिजाइनदार मेजपोशों से सजे हुए<br>कितनी थका टूटन और उदासी होगी वहां। <br><br> सराहनाओं के निर्जन टापू पर<br>वे निर्वासित कर दी जायेंगी<br>
यथार्थ के दलदल में डूब जाएगा उनका गृहविज्ञान।
</poem>
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