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{{KKBhaktiKavyaKKGlobal}}{{KKBhajan|रचनाकार=नरसी भगत
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वैश्णव जन तो तेने कहिये जे<br>
पीर परायी जाणे रे<br><br>
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥<br><br>
सकळ लोक मान मा सहुने वंदे<br>
नींदा न करे केनी रे<br>
वाच काछ मन निश्चळ राखे<br>
पर- स्त्री जेने मात रे<br>
जिह्वा थकी असत्य ना बोले<br>
पर- धन नव झाली झाले हाथ रे<br>
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥<br><br>
मोह- माया व्यापे नही जेने<br>
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मा रे<br>
राम नाम शुँ ताळी रे लागी<br>
सकळ तिरथ तेना तन मा रे<br>
वैश्णव जन तो तेने कहिये जे ॥<br><br>