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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुझपे तूफ़ाँ उठाये लोगों ने
मुफ़्त बैठे बिठाये लोगों ने

कर दिए अपने आने जाने के
तज़किरे जाए-जाए लोगों ने

वस्ल की बात कब बन आयी थी
दिल से दफ़्तर बनाये लोगों ने

बात वहाँ अपनी न जमने दी
अपने नक़्शे जमाये लोगों ने

सुनके उड़ती-सी अपनी चाहत की
दोनों के होश उड़ाये लोगों ने

बिन कहे राज़हा-ए-पिन्हानी
उसे क्योंकर सुनाये लोगों ने

क्या तमाशा है जो न देखे थे
वह तमाशे दिखाये लोगों ने

'''शब्दार्थ:
'''तज़किरा''': चर्चा, '''जाए-जाए''': इधर-उधर दुनिया भर में, '''राज़हा-ए-पिन्हानी''': छुपे हुए भेद
</poem>