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Kavita Kosh से
है शीशा तो गल जाएगा आग में
है सिना सोना तो तप कर निखर जाएगा
गुलेलें हैं हर शख़्स के हाथ में
कि बच के बचकर परिन्दा किधर जाएगा
तेरे वारदातों के इस शहर में