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बलिष्ठ सिंहनी हवा
दौडऩे लगी
मध्य पथ में डोलने लगी
सुन्दर पीली-पीली घास
फुर्तीली वह भाग रही थी
अपने आसपास से बेबाक
भाग रहे थे
उसके साथ साथ
उसके किशोर
मारुत-शावक् भी
पठार में झकझोर दिये थे
उसने सभी
कुलाँचों से डोल रहे थे
बाँसों के आतंकित झुरमुट
बजने लगी थीं
मौसम की
मेहराबदार खिड़कियाँ भी
एक बड़ा वन्य उद्यान था वह
सिंहनी का नन्दन -कानन
पठार में खुल रहा था
कुदरत का वह सुन्दर कालीन
ऐसी खूबसूरत ख़ूबसूरत जाँबाज शेरनी
बीहड़ में
मैंने पहली बार देखी
घण्टों दौड़ती रही थी
चौगान में सरपट
वनबिलाव की वह
चतुर मौसी।
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