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मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह
अपनी नाकामी-ए-ख़्वाहिश पे पशेमाँ होकर
फर्ज़ फ़र्ज़ के गाँव में जज़्बात का मकाँ होकर
पर अचानक मुझे तुमने जो पुकारा तो लगा
कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही