भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
धूप का अजगर
प्यास की आंखों में
धूल और झक्खड़ जितने भी पल थे मोगरे की छांवों के
सब झुलसे इरादों से चिड़चिड़े हो गए
</poem>