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उषस / ओमप्रकाश सारस्वत

18 bytes added, 16:07, 15 जनवरी 2009
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|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम प्रकाश ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
 
<Poem>
आलोक का पहले वसन
जागो ! उठो ! कुछ कर्म करो,
निज कर बढ़ाओ हे मनुज!
 
यह सूर्य के रथ की पताका-
विजय-वेला आरती,
यह दिवस-बाल-पिपासितों को-
शांति दे, समतामयी,
इसके खुरों की डार से पावन हआ प्रत्येक कण
तुम राग भरने को उठो,
तुम विश्व वरने को उठो,
ऊषा-समान अरे मनुज !
 
 
</poem>
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