भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
<br>श्रीजानकीवल्लभो विजयते
<br>श्री रामचरित मानस
<br>श्लोक
<br>वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
<br>मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।१।।वाणीविनायकौ॥१॥
<br>भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
<br>याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।२।।
<br>महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना।।
<br>सो०-प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
<br>जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।17।।धर।।१७।।
<br>
<br>चौ०-कपिपति रीछ निसाचर राजा। अंगदादि जे कीस समाजा।।
<br>राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुख दायक।।
<br>दो०-गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
<br>बदउँ बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।।१८।।
<br>
<br>बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
<br>अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ।।
<br>कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।
<br>दो0दो०-नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।<br>जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु।।26।।तुलसीदासु।।२६।।<br>–*–*–<br>चौ०-चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका।।
<br>बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
<br>ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें।।
<br>कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन जन मन मीना।।
<br>नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला।।
<br>राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता।।
<br>नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।
<br>कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू।।
<br>दो0दो०-राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।<br>जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।।27।।सुरसाल।।२७।।<br>–*–*–<br>चौ०-भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।
<br>सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा।।
<br>मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।।
<br>राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि दैखि देखि दयानिधि पोसो।।
<br>लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती।।
<br>गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर।।
<br>यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ।।
<br>रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें।।
<br>दो0दो०-सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु।<br>उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु।।28भालु।।२८(क)।।<br>हौहु हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास।<br>साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास।।28तुलसीदास।।२८(ख)।।<br>–*–*–<br>चौ०-अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी।।
<br>समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें।।
<br>सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही।।
<br>ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने।।
<br>दो0-प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।।
<br>तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान।।29सीलनिधान।।२९(क)।।
<br>राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।
<br>जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक।।29तुलसीक।।२९(ख)।।
<br>एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
<br>बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ।।29नसाइ।।२९(ग)।।<br>–*–*–<br>चौ०-जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई।।
<br>कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी।।
<br>संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा।।
<br>जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना।।
<br>औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना।।
<br>दो0दो०-मै मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।<br>समुझी नहि नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत।।30अचेत।।३०(क)।।
<br>श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
<br>किमि समुझौं मै मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़।।30बिमूढ़।।३०(ख)॥<br>–*–*–<br>चौ०-तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।।
<br>भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।।
<br>जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।।
Anonymous user