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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<poem>
जाने कब से मुट्ठियों में
बांधना चाहता हूँ सुख
जो भिंचने से पहले ही
हाथ से नदारद हो जाता है
बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूं कई वर्ष एक जगह
बहाए हैं कितने ही आँसू
संजोए कितने अहसास
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफन होने का भय है
घावों की वेदना
फूलों के खिलने का सुख है
आंधियों से पेड़ उखड़ने का दुख
आसमानी बौछार की ठंडक है
और जलती धरती से तलवों में जलन
रात के अंधेरे से उकताया हूँ
सूरज की चमक से भौंचक्का
मैं आदमी हूँ
थोड़े से प्रेम से विह्वल
उपेक्षा से दोगुना पीड़ित।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<poem>
जाने कब से मुट्ठियों में
बांधना चाहता हूँ सुख
जो भिंचने से पहले ही
हाथ से नदारद हो जाता है
बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूं कई वर्ष एक जगह
बहाए हैं कितने ही आँसू
संजोए कितने अहसास
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफन होने का भय है
घावों की वेदना
फूलों के खिलने का सुख है
आंधियों से पेड़ उखड़ने का दुख
आसमानी बौछार की ठंडक है
और जलती धरती से तलवों में जलन
रात के अंधेरे से उकताया हूँ
सूरज की चमक से भौंचक्का
मैं आदमी हूँ
थोड़े से प्रेम से विह्वल
उपेक्षा से दोगुना पीड़ित।
</poem>