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अव्यवस्था / मोहन साहिल

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कमरे में मेरा होना
मुझे नहीं मिलती वक्त वक़्त पर एशट्रेतीलियां तीलियाँ जला डालती हैं उंगिलयों उंगलियों के पोर सब कुछ उलट -पलट कर भी
कमरे में नहीं मिलती मुझे
गांधी की आत्मकथा
उसका अंत
मेरे कमरे में हर वक्तवक़्त
मौजूद रहता है मेरा बच्चा
एकटक देखता मेरी बौखलाहटबौख़लाहट
और परेशान हो जाता है
सिर पर हाथ रख
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