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मेरा गाँव / मोहन साहिल

24 bytes added, 02:14, 19 जनवरी 2009
<poem>
मैं अभी-अभी बदहवास
पहुंचा हूं पहुँचा हूँ अपने गाँवहाथ में लिए अखबारअख़बारऔर आँखों में वीभत्स दृष्यदृश्यलगाता हूँ आ आवाजआवाज़
चिल्ला-चिल्लाकर पुकरता हूँ-
होने वाला है विनाश
स्टार-वार
हो रहे हैं दंगे
काबुल तक के किस्से सुनाता हूँ
जार्ज बुश से लेकर
समझाता हूं मुशर्रफ मुशर्रफ़ तक के इरादे
धूमकेतू का टकराना
ओज़ोन में छेद
नन्हा खेलने में मस्त
मुन्नी गाने में
और कितना चिंतित हूं चिन्तित हूँ मैं
सबके लिए।
</poem>
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