भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
::क्योंकि
मैं उसी धरती में लौट लोट रहा हूँ उसकीऋतुओं की पलकों -सा बिछा हुआ मैं
उसकी ऊष्मा में
सुलग रहा हूँ
397
edits